पिछले साल मई में मणिपुर में भड़की हिंसा की गूँज अभी भी कम नहीं हुई है। दोनों पक्षों के बीच हुई हिंसा में कई लोगों के घर जला दिए गए, कई परिवारों ने अपने रिश्तेदारों को खो दिया, कई बच्चों ने अपनी माँ, पिता या दोनों को खो दिया। हिंसा को लेकर देश में काफी हंगामा हुआ था। राजनीति हुई, खूब आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए। मणिपुर की राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने मिलकर हिंसा को रोकने और हिंसा के बाद गंभीर स्थिति से निपटने के लिए कई कदम उठाए। लेकिन गुजरात की ‘गोकुलधाम’ एक ऐसी संस्था है जिसने असल में कुछ ऐसा किया जिससे हिंसाग्रस्त बच्चों की अंधेरी जिंदगी में उम्मीद की किरण जगमगा उठी।
हम जिस संस्था की बात कर रहे हैं वह आनंद जिले के पेटलाद तालुका के नार गाँव में स्थित ‘गोकुलधाम’ संस्था है। स्वामीनारायण धाम वडताल द्वारा संचालित यह संस्थान कई वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों में संस्कार और वैदिक शिक्षा का विकास कर रहा है। यह संस्था अब मणिपुर हिंसा के शिकार 50 मैतेई बच्चों का घर बन गई है। गोकुलधाम संस्था ने ऐसे 50 बच्चों को गोद लिया है, जिन्होंने मणिपुर हिंसा में अपने रिश्तेदारों को खो दिया है या किसी अन्य तरह से पीड़ित हुए हैं। गुजरात की यह संस्था उन बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बन गई है जिनका भविष्य हिंसा के बाद बेहद अंधकारमय दिख रहा था।
हिंसा के शिकार बच्चों ने सुनाई आपबीती
स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा संचालित इस गोकुलधाम संस्था में वर्तमान में मणिपुर राज्य के 50 मैतेई बच्चे रहते हैं। संस्था इन बच्चों की शिक्षा, आवास और अन्य सभी खर्च वहन कर रही है। दिव्य भास्कर से बात करते हुए पीड़ित बच्चों ने अपनी कहानी बताई।
मणिपुर के थोबल के पास एक गाँव से यहाँ आए मैतेई बच्चे ने कहा, “हिंसा के दौरान मेरे पिता और उनके दोस्त चर्च में छिपे हुए थे। जैसे ही कुकियों को इस बात का पता चला, उन्होंने चर्च को घेर लिया और मेरे पिता पर बम फेंक दिया। इस बम विस्फोट से उनके पेट का पूरा हिस्सा फट गया और एक उंगली भी कट गई। बम फेंकने के बाद कुकियों ने मेरे पिता के सिर के पिछले हिस्से में गोली मारकर हत्या कर दी।”
इसके अलावा एक अन्य बच्चे ने भी अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा, ”हर जगह हमले हो रहे थे। वहाँ अब भी शांति थी। एक दिन मैं नहाने गया, तभी कुकी लोगों ने हमारे घर के बगल की एक इमारत में आग लगा दी और फिर मैतेई लोगों को मार डाला। जब मैं बाहर आया तो मेरी माँ सब्जियाँ काट रही थी। जैसे ही उन्हें इस बारे में पता चला, उन्होंने तुरंत जितने संभव हो सके उतने कपड़े लिए और मुझे पहाड़ी इलाके में ले गईं।
इस तरह की हिंसा के शिकार मैतेई समुदाय के 50 बच्चे गोकुलधाम संस्था में शरण ले रहे हैं। अलग राज्य, अलग जलवायु, अलग बोली के बावजूद ये बच्चे संस्थान में खुद को ढाल रहे हैं। इस बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए जब ऑपइंडिया ने संस्था से संपर्क किया तो हमारी बातचीत गोकुलधाम के स्वामी सुखदेवप्रसाद दास से हुई। उन्होंने विस्तार से बताया कि यह विचार कहाँ से आया और संगठन इन पीड़ित बच्चों का पालन-पोषण कैसे कर रहा है।
मणिपुर हिंसा के शिकार बच्चों के लिए गोकुलधाम संस्थान
स्वामी सुखदेवप्रसाद दास ने कहा, ”हमने देश में कठिन हालात देखे हैं, खबरें पढ़कर या देखकर कई लोगों के मन में आया होगा कि ऐसी स्थिति में हम कैसे मदद कर सकते हैं। मणिपुर में इतनी हिंसा हुई, लोग मारे गए, कई लोग बेघर हो गए, कई बच्चों ने अपने परिवार खो दिए। इससे मन विचलित हुआ और ऐसे पीड़ित बच्चों की मदद करने की प्रेरणा मिली। ऐसे कई बच्चे हैं जिनमें से कईयों ने अपने माता-पिता को खो दिया है। कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनके माता-पिता दोनों ही नहीं रहे। संस्था में गुरुकुल है और इसमें पहले से ही कई बच्चे पढ़ रहे थे, तो विचार आया कि हम ऐसे पीड़ित बच्चों को यहाँ ला सकते हैं और उनकी मदद कर सकते हैं।”
स्वामी ने आगे कहा, “पिछले करीब एक महीने से हम इन बच्चों को यहाँ लाने और उनकी सारी जिम्मेदारियाँ उठाने की कोशिश कर रहे थे। बच्चों को यहाँ तक लाने में काफी मेहनत करनी पड़ी। महीनों तक कागजी कार्रवाई और अन्य कार्रवाई चलती रही। लेकिन अंत में हम सफल हुए और मैतेई समुदाय के 50 बच्चों को अब संस्थान में ला चुके हैं और संस्थान ने उन्हें उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने सहित सभी जिम्मेदारियाँ उठाई हैं। स्वामी ने यह भी कहा कि यहाँ आने वाले सभी बच्चों ने छोटी उम्र में हिंसा देखी है, कुछ हद तक संस्थान हिंसा के कारण उनके मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव को दूर करने का प्रयास कर रहा है।